मंगलवार, 31 जुलाई 2018

सुनों...

मेरे द‍िल की कहते हो या अपने द‍िल की सुनते हो,
कुछ तो है जो तुम अंदर ही अंदर बुनते हो...

सुनों,
टूटे तारे से बना वो रौशन सा रेश्मी स्पर्श ल‍िए,
वो खुद-ब-खुद आते हैं या तुम ही ख्वाबों को कहीं फूलों से चुनते हो...

सांस में उतर रहे हो कि‍सी लत से,
ये अदा है या मुझमें कहीं चुपचाप किसी धूंए से घुलते हो...

बताओ तो जरा,
पर्दा लाख क‍िया था हमने तुमसे,
फि‍र तुम बेपर्दा हो? या चुपके-चुपके इन पर्दों से भी मि‍लते हो...



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कतरा कतरा प्यास...


'जाना वाष्प होना तो नहीं...'




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जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ...

जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ, तो मेरे पास आना... बैठना घड़ी भर को संग, वो तमाम कि‍स्से मुझे फि‍र से सुनाना. और पूछना मुझसे क‍ि हुआ कुछ ऐस...