शुक्रवार, 30 मार्च 2012

मां, तू बहुत याद आती है...




मां, तू बहुत याद आती है...
ठीक सुबह की नींद सी मीठी तेरी याद,
अक्‍सर रात को नींद न आने वाला दर्द बन जाती है...
मां, तू बहुत याद आती है,
पलकों के झपकने के नित्‍यकर्म में,
जैसे कभी आंखों में कुछ गिरने पर,
वो फड़फड़ा जाती हैं,
मां, तू बहुत याद आती है...
खाली प्रेम पत्र सा है तेरा नेही हृदय,
न जताने पर अपार संभावनाओं से भरा,
लेकिन जब जताती है,
तो पन्‍नों की कमी पड़ जाती है...
मां, तू बहुत याद आती है...

अनिता शर्मा

बुधवार, 28 मार्च 2012

प्रतीक्षा

मैं कुछ लिखना चाहती हूं...
लेकिन शब्‍द कहीं खो गए हैं.
मैं कुछ सोचना चाहती हूं...
लेकिन भाव कहीं सो गए हैं.
मुझे लिखना होगा
शब्‍दों के मिलने तक.
मुझसे सोचना होगा,
भावों के जगने तक...

 ...अनिता शर्मा

जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ...

जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ, तो मेरे पास आना... बैठना घड़ी भर को संग, वो तमाम कि‍स्से मुझे फि‍र से सुनाना. और पूछना मुझसे क‍ि हुआ कुछ ऐस...