रास्ते कहीं खत्म नहीं होते, हम एक बार अपनी मंजिल को छू लें,लेकिन ये भी सच है कि एक रास्ता पार होते ही दूसरी राह बाहें फैलाए हमारा स्वागत करने को तैयार होती है। बस देर इस बात की है कि हम जो मंजिल पा चुके है उसका मोह त्याग कर नए रास्ते को अपना लें...
सोमवार, 3 जनवरी 2011
ये मेरी भावनाएं...
सुनों ये मृदु हैं,
सोम्य, नर्म और बुद्धिहीन हैं.
इन्हें देखो
ये मेरी भावनाएं हैं.
अरे-अरे छूओ नहीं,
कुछ कमजोर भी हैं ये.
तुम बस इन्हें देखो...
देखो कुछ देर यूं ही,
क्योंकि वे जरा संकोची भी हैं,
लचीली और बेहद कोमल,
महसूस करो इनकी
मृदुलता को, सोम्यता को
और,
अट्हास करो इनकी बुद्धिहीनता का...
अंत में इन्हें छूना,
इनसे खेलना,
इन्हें चूमना,
तोड़-मरोड़ कर इनके बदन को,
कर देना इनका बलात्कार,
वह भी एक नहीं,
कई कई बार,
ताकि ये डर, सहम कर जाएं बैठ
कोने में कहीं,
और दोबारा न कर पाएं
किसी पुरुष संग जुड़ने का दुस्साहस...
अनिता शर्मा
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