सोमवार, 26 जनवरी 2009

निशब्‍द हूं मैं...

जब पहली बार 

तुमने धीरे से कहा था
''तुम मुझे पसंद हो''
न जाने क्‍यों 
खुद का समेट
एक खोल में 
ढ़क लिया था 
पर सुनो... 
निशब्‍द हूं मैं 
तुम्‍हारी दोस्‍ती पाकर 
तुम हो बिखरी गंध से 
जिसे कभी छूकर खुद में समा लेना चाहा मैंने
तुम हो कुछ सिमटे से...
जिसे उधेड़कर फिर बुनना चाहा मैने,
पर सुनो 
निशब्‍द हूं मै...
तुम्‍हारा साथ पाकर 

जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ...

जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ, तो मेरे पास आना... बैठना घड़ी भर को संग, वो तमाम कि‍स्से मुझे फि‍र से सुनाना. और पूछना मुझसे क‍ि हुआ कुछ ऐस...