कागज पर
खाली रेखाओं से बिखरे तुम कभी कभी
मेरे लिखने का आधार बन जाते हो...
होठों पर
आड़ी तिरछी लकीरों से चिपके तुम
कभी सहसा... मुझे छूकर चले जाते हो...
मन के किसी कोने में
सदा सहमे से बैठे रहते हो
कि, जैसे मैने तुम्हें अभी अभी
डांटा हो,
अक्सर जब
धड़कन रुक जाती है तो अहसास होता है
कि तुम अब भी चल रहे हो
रक्त वाहिकाओं में कहीं... और तुम्हारा यूं रेंगना
मुझे सिहरन सी दे जाता है।
(अनिता शर्मा)
रास्ते कहीं खत्म नहीं होते, हम एक बार अपनी मंजिल को छू लें,लेकिन ये भी सच है कि एक रास्ता पार होते ही दूसरी राह बाहें फैलाए हमारा स्वागत करने को तैयार होती है। बस देर इस बात की है कि हम जो मंजिल पा चुके है उसका मोह त्याग कर नए रास्ते को अपना लें...
बुधवार, 11 फ़रवरी 2009
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ...
जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ, तो मेरे पास आना... बैठना घड़ी भर को संग, वो तमाम किस्से मुझे फिर से सुनाना. और पूछना मुझसे कि हुआ कुछ ऐस...
-
मुझे सजा होनी चाहिए, वह भी फांसी की, क्यों, क्योंकि मैं हत्या की दोषी हूं... वह भी एक या दो नहीं... मैं रोज एक हत्या करती हूं... ...
-
क्या हर कहानी सच्ची होती है... शायद हां. आखिर कहानियां हमारे अपने किस्सों से ही तो बनती हैं न... मानो जैसे जिंदगी को सुनते-सुनते एक रोज...
-
अकसर देखती हूं, राहगीर, नातेरिश्तेदार और यहां तक कि मेरे अपने दोस्तयार... उन्हें घूरघूर कर देखते हैं, उन की एक झलक को लालायित रहते हैं... -...