के मैं तुम्हें न जी सकी,
मुझे तोड़ देना संघर्ष
के मैं तुम्हें न सह सकी...
झूठी परंपराओं की वेदी पर...
अपने नेह को घोट पाना
कितना मुश्किल है
मेरे नेही
तुमने भला कब जाना
इस से तो अच्छा है
पिघल कर घुल जाउं,
लिप्त हो जाउं
तुम में
तुम्हारी प्राण वायु में
खो जाउं वाष्प सी कहीं
कि लौट कर
वापस न आ पाऊं
इस बेचैन आयु में...
वापस न आ पाऊं
इस बेचैन आयु में...
17 टिप्पणियां:
acchha likhti hain.
likhti rahiyega :)
aur hamare bhi vichaar padhein
http://www.ankitkumargautams.blogspot.com
aur
http://www.blondmedia.blogspot.com
par aur unhe bhi join karein
मुझे माफ करना जीवन
के मैं तुम्हें न जी सकी,
मुझे तोड़ देना संघर्ष
के मैं तुम्हें न सह सकी...
अति सुन्दर !
बहुत ही भाव भीना चित्रण उकेरा है आपने जीवन की इस निर्मम कटु सचाई का.
बहुत बढ़िया.
राज
pata nahi kya dar he tumhe
shekhar kumawat
मुझे तोड़ देना संघर्ष
के मैं तुम्हें न सह सकी.....why....
जीवन को न जिया जाये तो मुझे संदेह है की ये माफ़ करता है.....अच्छी कविता!
ह्रदयस्पर्शी कविता!
मार्मिक....
कुंवर जी,
aapki rachna me dard our katu satya jhalakata hai.
वापस न आ पाऊं
इस बेचैन आयु में...
बेचैनी भरी रचना पर सुन्दर
भावों की उम्दा अभिव्यक्ति!
aapki har rachana kabile tarif hain...apse hi kuchh likhne ki prerna milti hain..keep it up
बहुत बढिया....
आज आपकी कई रचनाएँ पढ़ी, लीक से हटकर बहुत ही बागी तेवर हैं आपकी रचनाओं में, आपकी हिम्मत और लेखनी की दाद देता हूँ, बहुत बहुत शुभकामना!
"झूठी परंपराओं की वेदी पर...
अपने नेह को घोट पाना
कितना मुश्किल है"
हर "इंसान" की सोच को शब्द देने के लिए आभार और संवेदेनशील रचना के लिए बधाई
prabal abhiyakti
bahut der se aapke blog par hoon anita .. well, i am just speechless.
kabhi kabhi shabd maun ho jaate hai ,kuch kahne ka saamartya nahi rah paata hai ..
main baad me phir kisi din ek ek kavita par kuch na kuch to jarur likhunga.
aapne ek nayi kavita ki dhaara ko janm diya hai ..
aapka bahut aabhar....
kabhi samay mile to mere kavitao ke blog par jarur aaye
www.poemsofvijay.blogspot.com
dhanywaad aapka .
vijay
bahut hi achhi rachna
khubsurat
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